अब, जबकि तुमसे मिले बरसों बीत गए हैं और तुम्हारे होने का मेरे होने पर प्रभाव स्पष्ट रूप से मुझे और औरों को दिखने लगा है तो आज तुम्हारे जन्मदिन पर मैं तुमसे हर बार की तरह एक और बार पूछना चाहता हूँ शरत, तुम कौन हो?
देवानन्दपुर में जन्मा मोतीलाल चट्टोपाध्याय का वो बेटा जिसे उसके ही कुल वालों ने अपनी कुल की मर्यादा को डुबोने वाला घोषित कर खुद से अलग माना था वो शरत या बर्मा की तंग गलियों में कुलियों, मज़दूरों के मध्य डॉक्टर बाबू के रूप में सम्मानित शरत। वो शरत जिसकी लिखी किताबें आज उसके जाने के बरसों बाद भी लोगों के ज़ेहन में हैं, जिसके गढ़े किरदारों ने समाज में गहराई तक धँसी विद्रूपता के प्रति विद्रोह का शंखनाद किया था, जिसके उपन्यासों को पहली दफ़ा पढ़कर लोगों को लगा था कि “हो ना हो यह ज़रूर रवि बाबू ने ही नाम बदल लिखा है, बांग्ला साहित्य में इतनी सुगढ़ रचना करने वाला भला कोई दूसरा हो सकता है क्या?” या वो शरत जिसके उपन्यास को पढ़कर लोगों ने मोर्चे निकाले थे कि इसने हमारी संस्कृति को पथभ्रष्ट करने का बीड़ा उठाया है, तुम कौन हो शरत?
देवदास का रचयिता शरत, चरित्रहीन का रचयिता शरत, श्रीकांत का रचयिता शरत और उस पाथेरदाबी का रचयिता शरत जिसपर अँगरेज़ सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था मगर फिर भी क्रांतिकारियों और देशप्रेमियों ने खोज कर पढ़ लिया था, तुम कौन हो शरत?
जिसे अपनी पूरी ज़िन्दगी समस्याओं से जूझना पड़ा, समाज के तानों को सुनना पड़ा, गरीबी में जीना पड़ा मगर उन सारी परिस्थितियों से लड़कर, जूझकर उसने अपनी कलम को चलते रहने दिया; जो सदियों से शोषित आधी आबादी को मुक्ति की राह दिखा गया वो शरत या वो शरत जिसने तमाखू पीते और साधू बनकर सन्यासियों के साथ घूमते महीनों गुज़ार दिए, बेपरवाही से, निश्चिंतता से।
तुम कौन हो शरत?
शरतचंद्र के समूचे व्यक्तित्व में इतनी परतें हैं कि कोई उन्हें आवारा मानता है तो किसी के लिए वो मसीहा हैं। किसी के लिए वो आदर्श हैं तो किसी के लिए सखा, जो उन्हें हाथ पकड़कर देवानंदपुर ले जाता है, भागलपुर में शैतानियों में शामिल करवाता है, कलकत्ता में ठोकरे खाते लोगों को दिखाता है, रंगून में गुज़रे ज़माने में हुईं ज़्यादतियों को समझाता है और फिर वापस ला एक छोटे से गाँव में छोड़ देता है जहाँ प्रकृति की अप्रतिम सुंदरता, एक छोटी नदी और उसके कुछ साथी उसके साथ रह जाते हैं।
शरत ने जीवन अव्यवस्थित ढंग से जिया। इतना अव्यवस्थित कि उनके बारे में व्यवस्थित ढंग से लिखना भी मुश्किल है। कभी उनकी बेफिक्री याद आती है तो कभी साफ़गोई। कभी उनकी चंद्रमुखी याद आती है तो कभी श्रीकांत। कभी लालू का बचपना याद आता है तो कभी वो विधवा दीदी जो सारे मोहल्ले के लिए प्राणप्रण से लगी रहती थी मगर उसके अंतिम समय पर वहाँ सिर्फ शरत ही था, बाकि सबने मुंह मोड़ लिया था। शरत को याद करने पर, बहुत कुछ याद आता है।
ये शरत ही थे जिन्हें लोग मन ही मन मसीहा मानते थे मगर समाज ने उन्हें लगभग बहिष्कृत कर रखा था। इसलिए हैरत की बात नहीं कि शरत की कालजयी जीवनी रचने वाले विष्णु प्रभाकर जब उनके जीवन के बारे में जानने के लिए भटक रहे थे तो उन्हें सुनने को मिलता था, ‘छोड़िए महाराज, ऐसा भी क्या था उसके जीवन में जिसे पाठकों को बताए बिना आपको चैन नहीं, नितांत स्वच्छंद व्यक्ति का जीवन क्या किसी के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है?’ कुछ ने तो ये भी कहा कि ‘दो चार गुंडों-बदमाशों का जीवन देख लो करीब से, शरतचंद्र की जीवनी तैयार हो जाएगी।’
ये शरत ही थे जिनके लिए कहा गया कि बंगाली साहित्य में टैगोर के अलावा कोई महान कथाकार हुआ है तो वो शरतचंद्र चट्टोपाध्याय है।
मानव संवेदनाओं को पढ़ने, एक छोटे से शैतान बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक का मनोविज्ञान समझने, अपने आस-पास घट रही घटनाओं से विचलित होकर उनपर साफ़गोई से लिखने वाले शरत ने तथाकथित सभ्य बंगाली समाज की विसंगतियों को उजागर किया था और पहली बार अपनी लेखनी से औरतों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के बजाय उन्हें अपने निर्णय लेने और अपने जीवन को तय करने का अधिकार दिया था। समाज के उन वर्गों की कहानियाँ लिखी थीं जिन्हें लोग खुद से अलग और छोटा मानते थे, और उन मुद्दों को छुआ जो तब तक अछूते थे।
ये शरत ही हैं जिन्हें पढ़कर आज भी आँखों के कोर गीले हो जाते हैं, जिनकी कहानियां अनजाने ही आपको एक बेहतर इंसान बना देती हैं, जिनका जीवन यह प्रेरणा देता है कि अनंत मुश्किलों के बाद भी व्यक्ति महान बन सकता है, अमर हो सकता है।
शरत को पढ़िए। देवदास, श्रीकांत, परिणीता, चरित्रहीन, पाथेरदावी, विप्रदास, बड़ी दीदी, देना-पावना, शुभदा, गृह-दाह, पल्ली समाज, शेषप्रश्न सब पढ़ जाइये। शरत की कहानियाँ पढ़ जाइये। और उसके बाद विष्णु प्रभाकर की लिखी शरत की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ पढ़ जाइये। उसके बाद, शरत के व्यक्तित्व को जान, शायद आप भी यह प्रश्न कर बैठेंगे, “तुम कौन हो शरत?”
लेखक – देवेन्द्र शर्मा
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September 24, 2019 — magnon